अं, अँ

अं, अँ(PALMISTRY ENCYCLOPEDIA संतोष हस्तरेखा विश्वकोष)
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
अँगूठा :: जब तक अँगूठा सुदृढ़, खड़ा हो रहा है मनुष्य जीवित है। मनुष्य के मरते ही उसका अँगूठा गिर जाता है। अँगूठे का हथेली में उतना ही महत्व है, जितना मुँह के ऊपर नाक का। हथेली से किये जाने वाले कार्यों में अकेले अँगूठे का 45 प्रतिशत योगदान होता है। अँगूठे का दिमाग से भी गहरा सम्बंध है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि किसी व्यक्ति का अँगूठा यदि अचानक काट दिया जाए तो वो पागल हो सकता है। गुरु द्रोणाचार्य ने भी एकलव्य से शरीर के इस महत्वपूर्ण भाग (अँगूठे) को गुरु दक्षिणा के रूप में माँगकर अर्जुन को दिय गए वचन को पूर्ण कर पाये थे। शास्त्रों में इसे हंस, शिव, गणेश, विष्णु-सूर्य आदि नामों से सम्बोधित कर इसके महत्व को बतलाया गया है।
अनादि सत्य सिद्ध ग्रंथों-वेद, उपनिषद, पुराण आदि में जहाँ कहीं भी आत्मा के स्वरूप या फिर परमतत्व, परमब्रह्म, परमेश्वर, परमात्मा का निरूपण किया गया है, उसके स्वरूप की तुलना अँगूठे से की गई है।
शरीर से पृथक होने-मृत्यु के बाद, आत्मा अँगूठे के आकार के क्षेत्र में मौजूद-उपस्थित रहती है।
वराहतोको निरगादंगुष्ठ परिमाणक:।
दृष्टोSगुंष्ठ शिरोमात्र: क्षणाद्गण्डशिलासम:॥
ब्रह्मा जी के नासिका छिद्र से अकस्मात अँगूठे के बराबर आकार का वराह शिशु निकला और अँगूठे के पेरूए के बराबर दिखने वाला वह प्राणी-वराह, क्षण भर में पर्वत के समान विस्तृत हो गया।[श्रीमद्भागवत महापुराण 3.13.18]
अंगुष्ठमात्रो रवितुल्यरूप, संकल्पाहंकार समन्वितो यः।
बुद्धेर्गुणेनात्मगुणेन चैव,आराग्रमात्रो ह्यपरोSपि दृष्टः॥
जो अँगुष्ठ मात्र परिमाण वाला, रवि तुल्य-सूर्य के समान प्रकाश वाला तथा संकल्प और अहंकार से युक्त है, बुद्धि के गुण के कारण और अपने गुण के कारण ही सूजे की नोक के जैसे सूक्ष्म आकार वाला है; ऐसा अपर अर्थात परमात्मा से भिन्न जीवात्मा भी निःसन्देह ज्ञानियों के द्वारा देखा गया है।[श्वेताश्वतरोपनिषद् 5.8]
अंगुष्ठमात्र: पुरुषो, मध्ये आत्मनि तिष्ठति।
ईशानो भूतभव्यस्य न तेता विजुगुप्सते॥
अँगुष्ठ मात्र परिमाण वाला, परम पुरुष-परमात्मा, शरीर के मध्य भाग अर्थात हृदयाकाश में स्थित है, जो कि भूत, भविष्य और वर्तमान का शासन करने वाला है। उसे जान लेने के बाद वह जिज्ञासु-मनुष्य किसी की निन्दा नहीं करता। यही वह परमतत्व है।[कठोपनिषद् 2.1.13]
मनुष्य के हाथ में रेखाएँ अक्सर बदलती रहती हैं। परन्तु अँगूठे पर पाई जाने वाली सूक्ष्म रेखाएँ मृत्यु पर्यन्त यथावत बनी रहती हैं।
Video link :: https://youtu.be/7DimBDCI6QQ
धर्म राज-यम का यह कहना है कि अँगूठे के गूढ़ तत्व को जान लेने के बाद, मनुष्य के बारे में सभी कुछ पता पड़ सकता है।
ईशानो भूत भव्यस्य स एवाद्य स उ श्वः।
भूत, भविष्य तथा वर्तमान पर शासन करने वाला वह परमात्म परमतत्त्व जैसा आज है, वैसा ही कल भी रहेगा।
अँगूठा-प्रथम पर्व खण्ड :- यह खण्ड धारक के आत्मविश्वास और शक्ति को प्रकट करता है। यदि यह दूसरे खण्ड की अपेक्षा लम्बा है तो, जातक में अत्यधिक आत्मविश्वास होगा। ऐसी स्थिति में मस्तिष्क रेखा का सुदृढ़-शुभ होना बहुत ही जरूरी है, अन्यथा उसके निर्णय गलत हो सकते हैं। तर्क और चिंतन शक्ति की कमी उसे जल्दबाजी में निर्णय लेने को मजबूर कर सकती है, जो कि अन्ततोगत्वा दुःखद परिणाम देती है। लम्बा प्रथम खण्ड रखने वाला व्यक्ति उत्पीड़न, अत्याचार, जुल्म करते हुए निरंकुश हो सकता है। उसकी जिद-हठ उसे दुराग्रही बना सकती है। वह कुछ करने के बाद ही उसके परिणाम पर विचार करेगा। वह अविवेकी और जल्दबाज होगा। यह एक ऐसा उदाहरण है जब कि सीमा से अधिक अच्छाई व्यक्ति को सीमा से बाहर ले जाती है और वह असफल हो जाता है।
अँगूठा-पर्व द्वितीय खण्ड :- यदि यह भाग पहले भाग से लम्बा है तो व्यक्ति में निर्णय, तर्क शक्ति आत्मविश्वास से अधिक होगी। वो बुद्धिमान और विवेकी होगा। वह किसी भी बात को बहुत जल्दी समझ लेगा। आय-व्यय के मामले में वह बहुत सोच-विचार कर कार्य करेगा। उसके निर्णय सामान्यतया सही होंगे। फिर भी दृढ इच्छा शक्ति के आभाव में वह अपने निर्णय, विचारों को परवान पर नहीं चढ़ा पायेगा। और हो सकता है कि वो केवल एक बोलने वाला बनकर रह जाये।
यदि दूसरा खण्ड बहुत लम्बा है तो व्यक्ति किसी भी बात को बहुत ज्यादा खींचेगा और उसकी बातों का कोई महत्व नहीं रह जायेगा।
इस खण्ड के बहुत ज्यादा छोटा रहने की अवस्था में व्यक्ति में तुरत विचार करने की क्षमता का अभाव होगा जो उसके निर्णय और भविष्य को प्रभावित करेगी।
बहुत बड़ा और चौड़ा होने पर व्यक्ति एक अच्छा विचारक और संसारी बन सकता है। बहुत छोटा और संकरा होने पर मनुष्य बुद्धि के मामले में वनमानुष के समान होगा।
पतला और सुडौल मध्य खण्ड व्यक्ति को संतुलित-सभ्य मगर बेचैन और चिड़चिड़ा बनाता है, जिसका प्रभाव उसकी चिन्तन शक्ति पर भी पड़ता है।




