ह

ह (PALMISTRY ENCYCLOPEDIA संतोष हस्तरेखा विश्वकोष)
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
हथेली का रंग ::
लाल :- यह मजबूत शरीर, कार्य क्षमता का प्रतीक है। ऐसे व्यक्ति कामुक, तामसी स्वभाव के होते हैं। लाल रंग लिये हुए रेखा भी लगभग यही दर्शाती है। लाल रंग लिये हुए जीवन रेखा कार्य क्षमता, शक्ति को दर्शाती है और लाल रंग की हृदय रेखा संवेदनशीलता का प्रतीक है।
पीला :- यह रेखा उदासी, अवसाद, सुस्ती, ग्लानि, निराशा, सुस्ती, खिन्नता दिखाती है। गुलाबी रंग वाली रेखा आशावान-उत्साही व्यक्तित्व और उज्जवल भविष्य को दर्शाती है। किसी भी प्रकार के हाथ के लिये यह एक अच्छी निशानी है।
सफेद :- यह अभिरुचि हीनता का प्रतीक है और ऐसे लोग स्वार्थी, अहंकारी-अभिमानी, दूसरों के लिये संवेदनशीलता-सहानुभति रहित, गंभीर, दूरी बनाये रखने वाले, तामसिक, प्रतिहिंसक, बदला लेने वाले होते हैं।
हस्तरेखा शास्त्र :: हस्तरेखा विज्ञान एक वृहद शास्त्र है। इसका पूर्वावलोकन संक्षेप में प्रस्तुत है। हस्त रेखाओं के आधार पर भूत, भविष्य और वर्तमान का आख्यान (Tale, Narrative, A legend, Account-कथन) एक कला है। इस वृहद ग्रन्थ की रचना में गणमान्य से साधारण व्यक्तियों तक के हाथों का निरीक्षण किया गया है। 45 साल की निरन्तर खोज, इसके लिपिबद्ध करने में सहायक हुई है। जाने-माने हस्त रेखा विशेषज्ञों, पुराण और शास्त्रों का गहन अध्ययन और विवेचना इसका आधार है। भारतीय हस्तरेखा ज्ञान का समावेश इसमें स्थान-स्थान पर किया गया है। इसके अध्ययन से कोई भी व्यक्ति एक अच्छा हस्तरेखा परीक्षक बन सकता है। इसमें हजारों रेखाचित्रों को बनाकर, विषय वस्तु को स्पष्ट किया गया है।
मनोविज्ञान का उपयोग प्रश्नकर्ता की सन्तुष्टि में सहायक है। इसका उपयोग उचित मार्गदर्शन के लिये करना चाहिए। इससे प्रश्नकर्ता को शान्ति, धीरज, साहस, सांत्वना मिलती है। हाथ और उँगलियों की बनावट, उँगलियों के पौरों पर पाये जाने वाले चिन्ह, अगूँठे पर पाई जाने वाली रेखाएँ और चिन्हों का भी विशेष महत्व है। हाथ की लम्बाई-चौड़ाई भी महत्वपूर्ण है। हाथ-हथेली पर पाये जाने वाले पर्वत और उनकी स्थिति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। पुरुष का दायाँ-सीधा और महिला का बाँया-उल्टा हाथ सामान्यतया देखा जाता है। वर्तमान काल में महिलायें स्वच्छंद-स्वेच्छाचारिणी, नौकरी करने वाली, पढ़ी-लिखी, स्वतंत्र विचारों, अहम् से परिपूर्ण, आत्मनिर्भर होती हैं। अतः उनका हाथ ध्यान से देखकर भी उतना ही बताना चाहिये, जितना जरूरी हो। पति-पत्नी का हाथ एक साथ देखने से भविष्यवाणी ज्यादा सटीक-सही होगी। प्रायः देखा जाता है कि जिस घटना को पति का हाथ स्पष्ट नहीं कर रहा वो पत्नी के हाथ में होती है और ऐसा ही स्त्री और पुरुष के लिए भी सही है। स्त्री पुरुष का सम्बल और पूरक है यह इस बात से स्पष्ट होता है। अतः निरीक्षक को एक साथ चारों हाथों का निरीक्षण-परीक्षण करना चाहिए। जो रेखाएँ पूरी, स्पष्ट और दोनों, चारों हाथों में होंगी उनका प्रभाव अवश्य होगा।
सामान्यतया रेखाएँ बदलती रहती हैं। केवल वही रेखाएँ हाथ में बनी रहतीं हैं, जिनका प्रभाव स्थायी और दीर्घकाल तक रहता है। कुछ रेखाएँ तो अपना असर दिखा कर मिट जाती हैं। हृदय और मस्तिष्क रेखाओं तक का बनना और बिगड़ना प्रायः देखा गया है। मनुष्य का भविष्य उसके प्रारब्ध, संचित और वर्तमान कर्म निर्धारित करते हैं। अतः बच्चे का हाथ ना ही देखा जाये तो बेहतर है। आदमी का बायाँ हाथ उसके माँ-बाप, चाचा और बुआओं का सटीक वर्णन करता है। स्त्री का दायाँ हाथ शादी से पहले उसके माँ-बाप का हाथ-उनका व्यतीत जीवन प्रदर्शित करता है। अविवाहित कन्या का दायाँ उसके पिता का स्पष्ट वर्णन करता है। शादी के उपरांत वही हाथ-शादी की उम्र के बाद, उसके पति का ब्यौरा देने लगता है। कभी-कभी कुछ चिन्ह हथेली पर प्रकट होते हैं और अपना असर दिखाकर चले जाते हैं। अगर कोई निशान नहीं मिटा तो उसका असर पूरी जिन्दगी बना रहता है।
जातक का आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय, भगवत्भक्ति, श्रद्धा, विश्वास, योग, मनन-चिन्तन बड़े से बड़े संकट को टालने में समर्थ हैं। बेमेल-अशुभ विवाह, बीमारी, दुर्घटना अकाल मृत्यु को आसानी से टाला जा सकता है। प्रमुख रेखाओं तक को मिटते और बनते देखा गया है। पूर्वजन्म के कर्मों-प्रारब्ध के आधार पर बनने वाले भाग्य को बदल जा सकता है, हालांकि इनसे पूरी तरह बचना नामुमकिन सा लगता है। हाथ में सूर्य या भाग्य रेखा की मौजूदगी सफलता सुनिश्चित नहीं करतीं।
हाथ दिखाने वाले हाथ दिखाते समय यथा सम्भव शाँत और उलझनों से मुक्त होना चाहिये। हाथ का आकार बनावट, हथेली की बनावट, नाखून, तिल, बारीक लकीरें, दाग-धब्बे, उँगलियों की बनावट और उनके ऊपर चिन्ह, बीच की दूरी, अगूँठा आदि सभी, कुछ न कुछ अवश्य बताते हैं।
हस्तरेखा और ज्योतिष शास्त्र :: यद्यपि हस्तरेखा विज्ञान और ज्योतिष शास्त्र स्वतंत्र विद्याएँ हैं, तथापि उनमें घनिष्ठ सम्बन्ध भी है। हाथ की लकीरों से जन्म लग्न, घड़ी, मुहूर्त आदि का ज्ञान हो सकता है।
हस्त रेखाओं की गुणवत्ता ::
गहराई लिये हुए रेखा :- यह अन्य गुणों से ज्यादा प्रभावकारी होती है। जो रेखा सबसे ज्यादा गहराई लिये हुए होगी, वह जातक के जीवन में सबसे ज्यादा प्रभाव डालेगी। इस प्रकार की हृदय रेखा संवेदन शीलता, कामना-वासना को बढ़ाने वाली तथा मस्तिष्क रेखा धारक व्यक्ति को मोहित, आसक्त, आकृष्ट, अनुरक्त करने वाली विचारों-बुद्धि को प्रभावित करने वाली होती है।
पतली रेखा :- इसका व्यक्ति के जीवन पर ज्यादा प्रभाव नहीं होता। पतली भाग्य रेखा, धारक के जीवन को दिशा निर्देश नहीं दे पाती। पतली जीवन रेखा स्वास्थ्य और शरीरिक रचना को कमजोर करती है।
चौड़ी-छिछली रेखा :- यह कमजोरी की निशानी है, भौतिक कारणों से भले ही वह जन्मजात-पैदाइशी या अचानक उत्त्पन्न हुई क्यों न हो।
सामान्य रेखा :- यह सीधी-सरल, मज़बूत, गुलाबी रंग वाली, साफ-शुद्ध, गहराई लिये हुए होगी परन्तु एक सामान्य-मध्यम दर्जे के व्यक्ति को प्रदर्शित करेगी।
आकस्मिक रेखायें :- मूल-प्रमुख और सहचर रेखाओं के अलावा कुछ रेखाएँ अचानक पैदा होकर गायब हो जाती हैं। रेखा की गहराई से उसके ऊपर जाने या नीचे आने को जाँचा-परखा जा सकता है। शुरू में रेखा मोटी-गहराई लिए हुए और बाद में पतली होगी।
हाथ दिखाना :: हाथ दिखाने वाले हाथ दिखाते समय यथा सम्भव शाँत और उलझनों से मुक्त होना चाहिये। हाथ का आकार बनावट, हथेली की बनावट, नाखून, तिल, बारीक लकीरें, दाग-धब्बे, उँगलियों की बनावट और उनके ऊपर चिन्ह, बीच की दूरी, अगूँठा आदि सभी, कुछ न कुछ अवश्य बताते हैं।
हाथ देखना :: हाथ देखते वक्त पर्याप्त रौशनी-प्रकाश का होना, जातक का सामान्य होना आवश्यक है। हाथ देखते वक्त लैंस का उपयोग लाभप्रद होता है। हाथ पर पाउडर डालकर रेखाओं को स्पष्ट किया जा सकता है। पुरुष का हाथ परीक्षक-निरीक्षक को सीधे हाथ में और स्त्री का उल्टा हाथ उलटे हाथ में पकड़ना चाहिए। हाथ से ग्रह दशा के ज्ञान से जन्म लग्न-समय को भी सुनिश्चित किया जा सकता है। जातक अपने हाथ की रेखाओं को स्पष्ट करने के लिये काली स्याही का प्रयोग करे तो और भी उत्तम-बेहतर है।
हाथ में केवल 2-3 रेखायें :: यदि हाथ में केवल 2 या 3 रेखाएँ ही हैं, तो यह हस्तरेखा विज्ञ के लिये एक चुनौती भरा है। इस परिस्थिति में उसे हाथ की बनावट, पर्वत, उँगलियों की बनावट, उनकी लम्बाई और उनके बीच की दूरी पर निर्भर होना पड़ता है। ऐसे हाथ उन लोगों के होते हैं, जो अपने अगले-पिछले कर्मों को लगभग बराबर कर चुके होते हैं। अगर उन्हें सांसारिक भोग चाहिये तो उस दिशा में कार्य करें और अगर चाहिये भक्ति तो वह तो उनके लिये बेहद आसान है।
हाथ एक ईश्वरीय रचना, देवी-देवताओं, तीर्थ स्थल, परमात्मा, दिव्य नदियाँ :: गँगा, यमुना और सरस्वती को दर्शाता है। पर्वत ब्रह्माण्ड के विभिन्न पर्वतों को दर्शाते हैं। शनि की ऊँगली और अँगूठे के बीच की जगह अक्षय तीर्थ का प्रतीक है। मनुष्य को प्रातःकाल जगने के बाद अपने दोनों हाथों को इस प्रकार मिलाकर रखना चाहिये कि दोनों हाथों की हृदय रेखाओं को मिलाकर अर्धचन्द्र की आकृति बन जाये तथा इसका दर्शन कर माँ-बाप, देवी-देवताओं तथा ईश्वर का आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।
Video link :: https://youtu.be/rQzjkolsIc8 प्रमुख रेखाएँ ::
(2). मस्तिष्क रेखा बृहस्पति के नीचे अँगूठे के के ऊपर निकलती है और हथेली के दूसरे सिरे तक जाती है। यह बौद्धिक क्षमता, विवेक प्रदान करती है। (3). हृदय रेखा बुध पर्वत के नीचे से निकल कर बृहस्पति की नीचे पहुँचती है। यह प्रेम सम्बन्ध और आयु को दर्शाती है। (4). भाग्य रेखा मणिबन्ध, जीवन रेखा अथवा केतु क्षेत्र से प्रारम्भ होती है और शनि पर्वत पर पहुँचती है। (5). सूर्य रेखा मणिबन्ध, जीवन रेखा अथवा केतु क्षेत्र से प्रारम्भ होती है और सूर्य पर्वत पर जाती है। (6). बुध रेखा केतु क्षेत्र अथवा जीवन रेखा से बुद्ध क्षेत्र तक जाती है। (7). स्वास्थ्य रेखा केतु क्षेत्र अथवा जीवन रेखा से निकल कर हृदय रेखा पर रूकती है। (8). अंतर्ज्ञान-अन्तर् दृष्टि रेखा गोलाई लिए हुए चंद्र पर्वत के बाहर की ओर जाती है। यह रेखा केतु क्षेत्र से मस्तिष्क रेखा तक भी होती है। (9). विवाह रेखा हृदय रेखा की ऊपर बुध की अँगुली के नीचे होती है। (10). यह रेखा विवाह रेखा पर खड़ी होती है और अपेक्षा कृत लम्बी होती है। अँगूठे के मूल में यव भी पुत्र को प्रदर्शित करते हैं। (11). ये खड़ी रेखा विवाह रेखा पर खड़ी होती है और छोटी होती है। (12). चंद्र क्षेत्र पर ये रेखाएँ लम्बी यात्राओं को दिखाती हैं। (13). मंगल रेखा जीवन रेखा से लगभग एक मिलीमीटर के फासले पाए होती है और जातक को दुर्घटनाओं और मृत्यु से बचाती हैं। (14). सकारात्मक प्रभाव रेखाएँ जीवन रेखा से कुछ दूरी पर होती हैं। (15). निम्न मंगल और शुक्र पर पड़ी रेखाएँ नकारात्मक प्रभाव (16). मणिबन्ध रेखाएँ जातक की उम्र बचपन से बुढ़ापे के चरों अवस्थाओं को प्रदर्शित। (17). जातक को धनी बनाती है। (18). सोलोमन वलय जातक को उच्च पद प्राप्त कराता है, मगर खतरा हर वक्त बना रहेगा। (19). शनि वलय जातक की तरक्की में बाधक है। (20). सूर्य वलय जातक की समृद्धि,मान-सम्मान में बाधक है। (21). बुध वलय जातक के बौद्धिक क्षमता को काम करता है। (22). शुक्र वलय जातक को गुप्त रोग दिखाता है। वलय किसी भी पर्वत की शक्ति को क्षींण करता है। (23). बुध पर खड़ी रेखाएँ जातक की मितव्यता और ख़ोज आदि को प्रदर्शित करती हैं। (24). रहस्य गुणक चिन्ह जातक का दैवीय सम्बन्ध प्रकट करता है। (25). अँगुलियों पर कड़ी रेखाएँ मित्र-सम्बन्धी। शनि की अँगुली पर द्वितीय पर्व पर खढ़ी रेखाएँ पुत्रों को दर्शाती हैं। (26). अँगुलियों पर पड़ी रेखाएँ शत्रु, प्रतिद्वन्दी। (27). हथेली के सिरे से शुक्र के ऊपर :- सीधे हाथ पर बहन और भाई, लम्बी रेखा भाई, छोटी रेखा बहन, टूटी हुइ रेखाएं मृत भाई-बहन। बाँये हाथ पर चाचा, बूआ। (28). अँगुलियों के नीचे निकलने वाली ये रेखाएँ आकस्मिक मृत्यु मृत्यु को प्रदर्शित करतीं हैं। बुध के नीचे 10-21, सूर्य के नीचे 21-28 से 49, शनि के नीचे 49-56 से 77, बृहस्पति के नीचे 77-84 से 105 वर्ष की आयु। |
हाथों का वर्गीकरण ::
पृथ्वी हाथ की पहचान आम तौर पर चौड़ी, वर्गाकार हथेलियों और अँगुलियों या मोटी या खुरदरी त्वचा, लाल रंग के तौर पर होती है। कलाई से हथेली की अँगुलियों के आखिरी हिस्से तक की हथेली की लम्बाई आम तौर पर हथेली के सबसे चौड़े हिस्से की चौड़ाई से कम होती है और आम तौर पर अँगुलियों की लम्बाई के बराबर होती है।
वायु हाथ में वर्गाकार या आयताकार हथेली व लम्बी अँगुलियाँ होती हैं और साथ ही साथ कभी-कभी उभरे हुए पोर, छोटे अँगूठे और अक्सर त्वचा सूखी होती है। कलाई से हथेली की अँगुलियों के नीचे करने के लिए लम्बाई आमतौर पर अँगुलियों की लम्बाई से कम है।
जल हाथ देखने में छोटे होते हैं और कभी-कभी अण्डाकार हथेली वाले, लंबी व लचीली अँगुलियों वाले होते हैं। कलाई से हथेली की अँगुलियों के आखिरी हिस्से तक की हथेली की लम्बाई आमतौर पर हथेली के सबसे चौड़े हिस्से की चौड़ाई से कम होती है और आम तौर पर अँगुलियों की लम्बाई के बराबर होती है।
अग्नि हाथ में चौकोर या आयताकार हथेली, लाल या गुलाबी त्वचा और अँगुलियाँ छोटी होती हैं। कलाई से हथेली की अँगुलियों के आखिरी हिस्से तक की हथेली की लम्बाई आमतौर पर अँगुलियों की लम्बाई से बड़ी होती है।

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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)






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